कांग्रेस के मंथन में निकला सांप…ब्लेक कोबरा
कांग्रेस नेताओं ने कांग्रेस को हरवाया , घूमघूमकर कब्र खोदी....जड़ों में मठा डाला ..
जबलपुर न्यूज ट्रैप- २०२३ के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह पराजित हुई ।मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान में बहुत बुरी हार हुई.। ताज्जुब की बात ये है कि मप्र-छग में चुनाव पूर्व के सभी सर्वे कांग्रेस सरकार बनने का दावाकर रहे थे. लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत ।छत्तीसगढ-राजस्थान से कांग्रेस की सत्ता छिन गई जबकि मध्यप्रदेश में वह चारों खाने चित्त हो गई। हार ऐसी हुई जिसे कांग्रेसी खुद हजम नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा वाले खुद कांग्रेस की एसी हार से अचंभित हैं. आखिर क्यों हारी कांग्रेस..? विधान सभा चुनाव में कांग्रेस क्यों हारी ,इसी पर चिंतन करने भोपाल में प्रदेश कांग्रेस ने मंथन कार्यक्रम आयोजित किया. जिसमें हारे प्रत्याशियों ने अपने दिल का दर्द खुलकर बयां किया ।प्राय: सभी ने कहा कि ऐसी अप्रत्याशित हार के लिए कोइ नहीं, खुद कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता जिम्मेदार हैं. गुटबाजी ने सब कुछ तहस नहस कर दिया. विरोधी गुट के लोगों ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हराने में पूरी ताकत झाोंक दी. विरोधी गुट वालों की सोच सिर्फ यही थी कि यदि दूसरे गुट का उम्मीदवार जीत गया, तो उनकी राजनीति खत्म… भाजपा ने जीत के लिए उतनी मेहनत या कोशिश नहीं की ,जितनी कांग्रेसियों ने कांग्रेस को हराने में की. इसी सोच का नतीजा रहा कि कांग्रेस चारों खाने चित हो गई।
एक नही…ं कई कांग्रेस ..कमलनाथ कांग्रेस, दिग्गी कांग्रेस, राहुल भैया कांग्रेस, पचौरी कांग्रेस…
मध्यप्रदेश में कोई एक कांग्रेस नहीं है ।यहां कांग्रेस टुकड़ों में बंटी है. करीब आधा दर्जन से ज्यादा गुट हैं जो क्षत्रप बनने छटपटाते रहते हैं. सबसे बड़ा गुट कमलनाथ खेमे का है. जिसका हर नेता खुद को कमलनाथ से कम नहीं मानता . कमलनाथ को अपना कुरता फटवाने में मजा आता है.उन्हें अपने गुट की भीड़ दिख जाये ,नारे लग जाए ,धक्का मुक्की हो जाए ,इसी में आनंद आता है. दूसरा बड़ा गुट दिग्विजय सिंह का है ,जिनकी जुवान जब-तब विवाद पैदा करती रहती है। जहां शांति हो, वहां भूकंप लाने के लिए दिग्गी राजा जाने जाते हैं।जिस मुददे पर कोई नहीं बोलता ,उस पर दिग्गी राजा बोलकर हवा दे देते हैं. संवेदनशील मुददों पर भी वे अपनी निजी राय ऐसी रखते हैं मानो पार्टी हाइकमान का स्टेंड हो. किस जिले शहर या क्षेत्र में क्या बोलना चाहिए शायद इसकी परवाह नहीं की जाती. दिग्विजय, की पूरी कोशिश यही रहती है कि किसी भी चुनाव में उनके ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट दी जाए.फिर उनकी हैसियत चाहे जीतने की हो या नहीं ,कोई फर्क नहीं पडता. कमलनाथ-दिग्विजय सिंह के बाद दो चार और बड़े गुट हैं ,जिनकी लीला भी अपरंपार है ।अजय सिंह राहुल, सुरेश पचौरी यादव इत्यादि–इत्यादि ।ये गुट भी आपसी खींचातानी में उलझा रहता है. अपने समर्थक को टिकट दिलाना मुख्य लक्ष्य रहता है ।इस गुट की भी अपने अपने क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है.
कांग्रेस में अनुशासन नहीं..
कांग्रस में सबसे बड़ी कमी अनुशासन की है. एक तो पार्टी का हर छोटा कार्यकर्ता भी खुद को वरिष्ठ नेता मािनता है।कोई भी खुद को आम कार्यकता नहीं मानता। जब अदना से कार्यकर्ता की ये स्थिति है. तब वाकई बड़े नेताओं की स्थिति क्या होगी ? समझा जा सकता है ।धड़ों में बंटी कांग्रेस के किसी भी नेता की जुवान पर लगाम नहीं है।हर छोटा -बड़ा नेता किसी भी तरह की टिप्पणी करने मानों स्वतंत्र है।किसी को पार्टी की गाइड लाइन की परवाह नहीं है ।जो मर्जी आई वैसा बोल दिया। शायद इसी सबका खमयाजा चुनाव में पार्टी और उम्मीदवार को भुगतना पड़ता है ।वैसे तो कांग्रेस को भाजपा से अनुशासन सीखना चाहिए. भाजपा में जब-तब अप्रत्याशित बडे-बडे बदलाब हो जाते हैं ,उसके बाद भी कोइ नेता कार्यकर्ता कभी चूं चपाट नहीं करता। लेकिन यदि ऐसा कांग्रेस में हो जाए ,तो कांग्रेसी अघोषित युद्ध छेडने से बाज नहीं आएंगें।
कांग्रेस की पहचान – भीतरघात
दरअसल किसी भी चुनाव में कांग्रेस भितरघात के कारण ही हारती है. भीतरघात का ये खेल कोई आज से नही, दशकों से होता आया है.।आज तो ये खेल कांग्रेस मे परंपरा का रूप ले चुका है. अपने,आदमी -समर्थक को टिकट नहीं मिली ,तो दूसरे को हरवाना है. इस फार्मूले पर विरोधी गुट बड़ी तेजी से एक्टिव हो जाते हैं। बड़े नेताओं का बड़ा दोष..
कांग्रेस में गुटबाजी, भीतरघात जैसे खेल के मुख्य दोषी बड़े नेता ही हैं. जो कभी इसके खात्मे की ओर ध्यान नहीं देते. ये नहीं सोचा जाता कि जो आप बोओगे ,वही आप काटोगे ..जिसके साथ भीतरघात या धोखा होगा ,वो बदला जरूर लेगा ।मौका आने पर वो भी ऐसी ही करेगा। ऐसे में ये सिलसिला, चक्र बनकर चलता ही रहेगा और हमेशा पार्टी व उसके उम्मीदवार को नुकसान ही होगा।गुटीय राजनीति करने वाले नेता चाह लें ,तो गुटवाजी-भीतरघात को समाप्त किया जा सकता है.लेकिन सभी की अपनी पद प्रतिष्ठा और ईगो है. जो उन्हें बड़ा दिल दिखाने या लचीचापन लाने से रोकता है। जीतू पटवारी से उम्मीद
राहुल गांधी ने कमलनाथ को हटाकर जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी है।जीतू पटवारी युवा चेहरा हैं, मेहनत भी खूब करते हैं.भाषण बाजी में भी आगे हैं ।पार्टी हाईकमान का आर्शिवाद उन्हें प्राप्त है। ऐसे में वे खुलकर राजनीति की पिच पर बेटिंग और फील्डिंग सब कर सकते हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को सरकार के खिलाफ क्या बोलना है. किन मुद्दों को उठाना है ये उन्हें आता है।जीतू पटवारी दौरा कर पूरे प्रदेश में कांग्रेसजनों से सतत संपर्क बना रहे हैं. ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि वे पार्टी को पटरी पर लाने कोई करिश्मा कर दिखाएं.
विधानसभा चुनाव के समय जबलपुर नहीं आए कमलनाथ -दिग्विजय सिंह
२०२३ के विधानसभा चुनाव के दौरान जब भाजपा के शीर्ष नेता, जबलपुर का दौरा पर दौरा कर रहे कर रहे थे जगह-जगह रैली-रोडशो-आमसभाएं कर रहे थे, तब कांग्रेस के बड़े नेता नदारत थे. तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तो चुनाव के समय जबलपुर ही नहीं आए. यहां की ८ सीटों पर उम्मीदवारों को अकेला छोड़ दिया गया. वे खुद प्रचार करें, कांग्रेस की नीतियां बताएं ,आमसभाएं करें और अपनी स्थिति मजबूत करें।कमोबेश, सभी उम्मीदवारों को यही करना पड़ा. सभी आठों उम्मीदवारों ने अपने दम पर चुनाव लड़ा ,जिसमें 7 उम्मीदवार हार गये. हारे प्रत्याशी मानते हैं कि यदि चुनावप्रचार के लिए पार्टी के बड़े नेता आ जाते तो स्थिति कुछ और होती ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे दिग्गज नेताओं के आगे कांग्रेस उम्मीदवारों की क्या हैसियत..? रही बात कांग्रेस के लोकल नेताओं की ,तो वे एक दूसरे की जड़ों में मठा डालने में व्यस्त रहे. आपसी खीचातानी-मनमुटाव -मनभेद-मतभेद की वजह से ऐसे नेता अपनी विधान सभा से या गोल रहे, या फिर भीतर घात में सक्रिय रहे. जिसका नतीजा रहा कांग्रेस की हार….बुरी हार….. ………………………………………………………