मौत नाचती रही, फेफड़ों में जिन्दगी की सांसें भरते रहे डॉ.शैलेन्द्र राजपूत
दुनिया भर की स्ट्डीस से ईलाज-ड्रग्स प्रोटोकाल- ट्रीटमेंट प्लॉन बनाया
- बिस्तर – पलंग बढ़ाने से कोई हल नहीं, जान बचाने चाहिये नर्सिंग स्टॉफ
- कोरोना में मेट्रो अस्पताल ने बचाई हजारों मरीज की जान
- कोरोना मरीज की जान कैसे बचे, इसके लिए धुंआधार स्टडी, गहन अध्ययन
- रिश्तों को टूटता देखा, तो कई बार डॉ. राजपूत की आंखें भी डबडबा आईं
- डॉक्टर-नर्सिंग स्टॉफ का डर दूर करने क्लॉस भी लगाई
जबलपुर न्यूज ट्रैप
कोरोना की वो स्याह यादें…शायद ही कभी कोई भूल पाए, कोरोना यानि मौत… सिर पर नाचती मौत… कोई ईलाज नहीं, कोइ सटीक दवा नहीं। देश-दुनिया के साथ जबलपुर में सरकारी और प्राइवेट अस्पताल मरीजों से खचाखच भर गए। बेड की कमी पड़ गई। कहां जांए मरीज कहां..? कहां उनका इलाज हो.? आम आदमी भयभीत.. शासन-प्रशासन भयभीत … डाक्टर-नर्सिंग स्टॉफ भी भयभीत…कोइ मरीज को छूने तैयार नहीं… बहुत से प्राइवेट अस्पतालों के तो दरवाजे बंद हो गए। ऐसे में मेट्रो अस्पताल फरिश्ते के रूप में सामने आया। जाने माने एमडी मेडिसन डॉ. शैलेन्द्र राजपूत ने कमर कस ली। उन्होंने ठान लिया कि अपनी व अपने परिवार की जान की परवाह किए बिना, वे मरीजों की जान बचाएंगे। उन्होंने दुनिया के तमाम बड़े देशों की रिसर्च खंगाली, स्टडी की और फिर खुद ड्रग्स व इलाज का प्रोटोकॉल बनाया। बिना डरे, कोरोना मरीज की जॉँच की और इलाज किया। अपने नर्सिंग स्टॉफ का मनोबल बढ़ाया, उनका डर दूर किया। स्थिति ये रही कि सैकड़ों-हजारों मरीजों की जान बच गई। मौत से जूझते आने वाले मरीज मेट्रो हास्पिटल से हंसते मुस्कुराते विदा हुए। ये था डॉ. शैलेन्द्र राजपूत का कमाल … कोरोना के महान योद्धा का योगदान।
जबलपुर न्यूज ट्रैप
शून्य से शिखर तक…
सभी को पता है कि कोरोना जब आया, तब इसका कोई ट्रीटमेंट नहीं था। बचाव सावधानी ही इलाज था। मगर जिसे कोरोना हो गया, वो क्या करे…? क्या बिना इलाज मौत को गले लगा ले? इसी सवाल ने डॉ. राजपूत को अंदर से झकझोर दिया। उन्होंने ठाना कि वे ड्रग्स-ट्रीटमेंट प्लॉन तैयार करेंगे। उन्होंने अमेरिका-इंग्लैण्ड- फ्रांस-ऑस्ट्रेलिया, रूस चीन-जापान समेत पश्चिमी देशों की लेटेस्ट रिसर्च खंगाली। बारीकी से अध्ययन किया। सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग से डिस्कशन किया और फिर ड्रग्स प्रोटोकाल व ट्रीटमेंट प्लान सैट किया। डॉ. राजपूत निरंतर अपडेट रहने के लिए रिसर्च वाली बुक्स पढ़ते रहे, उनसे जूझते और फिर अपने नोट्स तैयार करते रहे। जैसे ही उनका माइंड सैट हुआ, उन्हें लगा कि इलाज मिल गया, फौरन ट्रीटमेंट प्लॉन तैयार कर लिया।
बेड बढ़ाना कोई हल नहीं, नर्सिंग स्टॉफ जरूरी
डॉ. राजपूत का मानना था कि बेड बढ़ाने से कुछ नहीं होने वाला। दरअसल शासन-प्रशासन ने होटल-लॉज तक में मरीजों के लिए बेड की व्यवस्था कर दी थी। लेकिन सवाल यही था कि वहां इलाज करेगा कौन..? न डाक्टर- न नर्सिंग स्टाफ… होटल के कमरों मे पड़े-पड़े मरीज कैसे ठीक होगा। डॉ. राजपूत ने इसलिए डाक्टर व नर्सिंग स्टॉफ की क्लास ली और उनका मनोवल बढ़ाया। नर्सिंग स्टाफ को चौकन्ना रहकर मरीज की सेवा करने की हिदायत दी। इसी का नतीजा था कि डॉ. राजपूत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर नर्सिंग स्टॉफ, वार्ड में मरीजों की सेवा में जुटा रहा, जिससे मरीज ठीक हुए।
जब नर्सिंग स्टॉफ को हो गया कोरोना…
कोरोना के इलाज के दौरान मेट्रो हॉस्पिटल में विडंबनाजन्य स्थिति तब उत्पन्न हुई, जब एक नर्सिंग स्टॉफ पुष्पा को कोरोना हो गया। पूरे स्टॉफ में दहशत फैलने लगी। हालात भांपकर डॉ. राजपूत ने नर्सिंग स्टाफ को ढाढस बंधाया। उन्हें बिल्कुल न डरने की सलाह दी। जिसे कोरोना हुआ, उसका इलाज किया। पुष्पा ठीक हो गई। उससे पूछा गया कि उसे कोरोना कैसे हुआ..? तो उसने बताया, कि वार्ड में जब वह मरीजों की सेवा में लगी थी, तभी उसका मॉस्क उतर गया था। कारण जानकर सभी ने राहत की सांस ली।
पत्नी-बच्चों की परवाह नहीं की
डॉ.शैलेन्द्र राजपूत के परिवार में उनकी पत्नी डॉ. शीतल राजपूत व २ बेटियां हैं। उन्होंने भी भरपूर साथ दिया। न तो वे डरीं और न डॉ.राजपूत का हौसला कम होने दिया। डॉ. राजपूत ने अपनी पीपीटी किट पहनी, पत्नी-बच्चों को घर पर हाय-हेलो कहा और निकल पड़े अपने दायित्व को पूरा करने के सफर पर।
हजारों मरीजों की जान बचाई
इस महान योद्धा ने अपनी कर्तव्य परायणता और जुनून के चलते जबलपुर ही नहीं, पूरे महाकौशल अंचल से हजारों मरीजों की जानें बचाई। चूूूूूूूंकि उनका ट्रीटमेंट प्लॉन सुनिश्चित था, ड्रग्स प्रोटोकाल रेडी था, लिहाजा उन्हें इलाज करने में कोई परेशानी नही हुई। जिसे रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत थी, उसे इंजेक्शन लगाया और जिसे जरूरत नहीं थी, उसे गोली-दवाएं व प्रिकाशन्स से ठीक कर दिया। मेट्रो अस्पताल में जितने भी मरीज आए, उसमें प्राय: सभी स्वस्थ होकर गए।
दिन भर न खाना खाते
न पानी पीते…
६ दिन में ८ किलो वजन घटा
डॉ. शैलेन्द्र राजपूत मरीजों के इलाज के दौरान दिन भर भूखे प्यासे रहते थे। पीपीटी किट के रूप में एक बार सुबह जो चोला उन्होंने पहना, तो देर रात तक नहीं उतरता था। ऐसे में वे न खाना खाते थे और न पानी पीते थे। नतीजा ये हुआ कि मात्र ६ दिन में ही उनका ८ किलो वजन कम हो गया। इसके बाद भी वे मुस्तैदी से अपनी डयूटी में जुटे रहे।
ऐसे में तो करोना हम सभी को मार देगा..
जबलपुर ही नहीं, देश-प्रदेश के बहुत से प्राइवेट अस्पतालों ने जब कोरोना से डरकर अपने दरवाजे बंद कर दिए, या फिर ईलाज के नाम पर सौदेबाजी शुरू कर दी, उस समय डॉ.राजपूत को लगा, कि यदि कोरोना से समय रहते निपटा नही गया, तो ये हम सभी को खत्म कर देगा। किसी न किसी को तो हिम्मत दिखाना ही पड़ेगी। किसी न किसी को आगे तो आना ही पड़ेगा। ऐसे में डॉ़ राजपूत ने खुद को भगतसिंह मानकर मैदानी मोर्चा संभाल लिया।
सौरभ बडेरिया का योगदान अविश्वमरणीय
डॉ.शैलेन्द्र राजपूत कोरोना के महान योद्धा हैं, ये बिल्कुल सही है। लेकिन उतने ही बड़े योद्धा हैं, मेट्रो अस्पताल के संचालक सौरभ बड़ेरिया…। जिन्होंने डॉ. राजपूत के हर प्लॉन, हर रिसर्च, हर स्टडी को माना। उनके ड्रग्स प्रोटोकाल- ट्रीटमेंट प्लान को गंभीरता से लिया और फिर अपने स्तर पर उसी अनुरूप संसाधन जुटाए, व्यवस्थांए कीं। क्योंकि इलाज के लिए उस अनुरूप व्यवस्थाएं होना जरूरी थीं। मंहगे से मंहगे उपकरण व जरूरी संसाधन जुटाने में सौरभ बडेरिया ने न देर की और खर्च की परवाह की। रेमडेसविर इंजेक्शन से लेकर प्रत्येक जरूरी ड्रग्स की अस्पताल में व्यवस्थाएं की। पीपीटी किट हो या फिर मॉस्क या फिर सैनेटाइजर। हर आदमी के लिए इसका इंतजाम किया। अस्पताल के आईसीयू, आईसीसीयू से लेकर तमाम वार्डों में पलंग बढ़ा दिये। डाक्टर-नर्सिंग स्टॉफ की संख्या बढ़ा दी। कुलमिलाकर डॉ. राजपूत जो भी कहते गए, वैसा सौरभ बडेरिया करते गए। डॉ. राजपूत के मन में जो आया, सौरभ बडेरिया ने फौरन उसे मूर्तरूप दे दिया। तमाम दिग्गज हस्तियां, उघोगपति सभी की पहली च्वॉइस मेट्रो हास्पिटल ही रही। उन्हें भरोसा था कि वे यहां कोरोना को मात देने में कामयाब होंगे। संयोग से हुआ भी ऐसा। ऐसी दशा में यदि सौरभ बडेरिया को डॉ. राजपूत के बाद योद्धा क्रमांक-२ कहा जाए, तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी।