रहम करो हजूर… खत्म करके ही दम लोगे कांग्रेस को

पूरी कांग्रेस समाती जा रही भाजपा में, प्रदेश कांग्रेस सदमें में

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कांग्रेस छोड भाजपा में आने का सिलसिला जारी- कांग्रेस में बड़ी तेज से गिर रहे विकेट- क्या

कांग्रेस में भविष्य नजर नहीं आ रहा कांग्रेसजनों में-

मप्र कांग्रेस मश्किल के दौर में-

कांग्रेस कई बड़े नेताओं के भाजपा में शामिल होने की संभावना-

ऐेसे में तो मिट जाएगी कांग्रेस- भाजपा का दरवाजा खुला धड़ाधड प्रवेश की होड-

हजूर रहम करो…ऐसा मत करो..एंसे में तो खतम हो जाएगी कांग्रेस कोई नामलेवा नहीं बचेगा। मप्र की सियासी राजनीति के गलियारों में ये दर्द भरी आवाज बडी तेजी से गूज रही है। जिस रफ्तार से कांग्रेसी कांग्रेस को छोड, भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उसने भाजपा को खुश, तो कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। पता चला है कि मध्यप्रदेश के कई बड़े नेता , बहुत जल्द भाजपा में शमिल होने वाले हैं। जबलपुर से भी कुछ बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर भाजपा में आने की संभावना जताई जा रही है। स्थिती ये है कि आज की तारीख में कांगे्रस के पास लोकसभा चुनाव लडने वाला कोई बड़़ा नाम नहीं है। जबलपुर में तो कांग्रस का कोई बडा नेता लोकसभा चुनाव लडने तैयार नहीं हो रहा है। उन्हें लग रहा है कि फिजूल में करोड़ों रुपये क्यों अपनी जेब से खर्च किए जाए। ५-६ लाख वोटों से हारने की आशंका सभी के दिलों दिमाग में बनी हुई है।

परिवारवाद ओर नेतृत्व हीनता से कांग्रेस की दुर्गति-

कांगेस में परिवारवाद का अभिषाप रहा है। पहले बाप को टिकट फिर पत्नी, पुत्र व पुत्रियों को टिकट। फिर मामा-भांजा चाचा-भतीजा बहू को टिकट- बस यहीं तक सीमित रही कांगे्रस। जिसका खामियाजा पार्टी को आज भुगतना पड़ रहा है। भाई भतीजा वाद के कारण मैदानी मेहनती कार्यकर्ता निराश हुआ? सेकेण्ड लाइन के नेता हाशिए पर चले गए। उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया गया। जिसकी वजह से उन्होने पार्टी से ही किनारा काटना शुरू कर दिया।

कांग्रेस में ही दावा किया जा सकता है कि किसे मिलेगी टिकट-

भाजपा में अंदाजा लगाना मुश्किल है, कि किस चुनाव में किसे टिकट मिलेगी। क्योंकि पूरा नियंत्रण पार्टी संगठन का होता है। उसके बिना पत्ता भी नहीं हिलता। लेकिन कांग्रेस में तो पहले ही पता चल जाता है कि फलां नेता को ही टिकट मिलेगी क्योकि वह नेता कांग्रेस के अमुक बडे नेता का खास है। गुट चलाने वाले नेता, अपने-अपने चेलों की लिस्ट बनाए रखते हैं। और फिर जिस तरह आरक्षित सीटों को ध्यान में रखा जाता है, ठीक उसी तरह हर गुट की निर्धारित टिकट के फार्मूले को अमलीजामा पहनाया जाता है। उम्मीदवार कैसा भी हो जीतने की क्षमता हो या न हो इससेे कोई फर्क नहीं पडता। सिर्फ अपने बड़े नेता की भरोसेमंद चेला होना जरुरी है। समझो टिकट पक्की कांग्रेस के गुटवाजी वाले इसी में खुश हो जाते हैं कि उन्होने अपने समर्थक को टिकट दिला दी। आगे उसका भाग्य जीते या हारे लेकिन गुटवाजी बाले नेता इसी को अपनी जीत समझ लेते हैं।

जबलपुर से कई बडे नेता कांग्रेस छोडऩे की तैयारी में-

जानकारी मिली है कि बेमौसम पतझड के इस मौसम में जबलपुर के कई बड़े-छोटे नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले हैं। ऐसा होता है तो जबलपुर में कांगे्रस का किस्सा ही खत्म हो जाएगा। जो नेता पार्टी छोडऩे वाले हैं, उनकी भाजपा संगठन से बातचीत चल रही है। कुछ बिन्दू निर्धारित किए गए हैं जिन पर चर्चा कर निर्णय लिया जाना है। मसलन किसी को काई बड़ा पद चाहिए तो, किसी को टिकट का आश्वासन इत्यादि..इत्यादि, बताते हैं। जैसे ही भाजपा संगठन ने ग्रीन सिग्रल दिया वैसे ही कई बडे कांग्रेस नेता, कंधे पर भगवा गमछा डाले नजर आ जाएंगे।

अस्तित्व संकट से जूझती कांग्रेस-

पूरे मप्र में कांग्रेस अपने अस्तित्व संकट से जूझती नजर आ रही है कमलनाथ- दिग्विजय सिंह को साइट लाइन करने के बाद प्रदेश की कमान जीतू पटवारी संभाल रहे हैं। लेकिन टुकडों में बंटी कांग्रेस का असर इस नए युवा नेतृत्व के कामकाज व सोच पर भी पड़ रहा है। गुटीय कार्यकर्ता, वैसा सपोर्ट नहीं कर रहे, जैसा करना चाहिए। नतीजा ये है, कि लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार ढूंडे नहीं मिल पा रहे।

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