जेडीए के सीईओ दीपक वैद्य और अमित धुर्वे ने टीआईटी एक्ट की धज्जियां उड़ाईं

भूमिस्वामी को अनुचित लाभ पहुंचाने 50 करोड़ की जमीन की अवैध एनओसी दे दी

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जेडीए में करोड़ों का घपला

भूमिस्वामी को अनुचित लाभ पहुंचाने 50 करोड़ की जमीन की अवैध एनओसी दे दी

जमीन बिकने बाजार में घूमी

एनओसी, तो सब के होश उड़ गए,

एनओसी को फर्जी करार देने का खेल शुरू

डिवीजनल कमिश्नर के आदेश पर कलेक्टर

के जरिए अपर कलेक्टर मीथा सिंह कर रहीं

इस बड़े फर्जीवाड़े की जांच


न्यूज़ ट्रैप के पास फर्जीगडे के सभी रिकॉर्ड, दस्तावेज, एनओसी

भूअर्जन अधिकारी पूजा तिवारी के पास धेले का काम नहीं..सब इंजीनियर

अमित धुर्वे देख रहे राजस्व के मलाईदार काम


एनओसी के लिए मध्यप्रदेश शासन, जेडीए बोर्ड, चेयरमेन डिवीजनल कमिश्नर से भी नहीं ली परमीशन या अनुमोदन


घपले घोटाले के लिए कुख्यात जेडीए एक बार फिर विवादों और सुर्खियों में है। इस बार के घपले ने समूचे सरकारी तंत्र को हिलाकर रख दिया है। मामला है टीआईटी एक्ट की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध रूप से एनओसी देने का। जेडीए के अधिकारियों ने बड़ी चतुराई से फर्जी एनओसी का खेल खेला, लेकिन उनका ये खेल उनके ही गले की फांस बन गया। सूत्रों का कहना है कि बिना राशि जमा कराए, एक भूमिस्वामी को 50 करोड़ की जमीन पर निर्माण करने एनओसी दे दी गई। जेडीए के घूसखोरों ने सोचा था कि मामला दब जाएगा और उनके बारे-न्यारे हो जाएंगे, मगर उल्टा हो गया। फर्जी एनओसी बाजार में घूमने लगी। 15000 रुपये वर्गफुट के रेट पर जमीन का सौदा करने एनओसी जमकर दौड़ी। इसी बीच न्यूज ट्रैप के हाथ ये एनओसी लगी। जिसकी जेडीए में पड़ताल की गई, तो पता चला कि डिस्पैच रजिस्टर में इस एनओसी का कोई उल्लेख नहीं है। एनओसी ऊपर ही ऊपर बनाकर दे दी गई। जब खूब हल्ला मच गया तो सीईओ दीपक वैद्य और उनके राइट हैंड अमित धुर्वे कहने लगे कि एनओसी फर्जी है। सवाल यह है कि यदि एनओसी फर्जी है तो पुलिस में एफआर क्यों नहीं की गई। उस कथित एनओसी अमित धुर्वे के हूबहू दस्तखत हैं। लेटर पैड जेडीए का है में और लिखा पढ़ी के फॉन्ट भी जेडीए कंप्यूटर के ही लगते हैं। ऐसे में फर्जी एनओसी कोई बाहरी व्यक्ति कैसे बना सकता है।



यह है पूरा मामलायह है 

 

जेडीए के योजना क्रमांक 11 रानीपुर में खसरा नंबर 5/2/4, 8/2/7 की जमीन का अधीगृहण किया था। 79 हजार वर्ग फुट जमीन जेडीए में आने के बाद बतौर समझौता 16000 वर्ग फुट भूमि जमीन मालिक को सौंप दी गई। उक्त भूमि का वर्ष 1980 में विधिवत राजपत्र में प्रकाशन भी हुआ था। जिसके बाद टीएनसीपी ने अपने लेआउट में उक्त भूमि के प्लॉट दर्शाए थे। प्रक्रिया पूरी होने के बाद जेडीए ने योजना का संचालन किया और उसके बाद नगर वन के लिए भूमि छोड़ दी थी। जेडीए एवं टीएनसीपी के नक्शे में भी उक्त भूमि नगर वन के लिए आरक्षित थी। यहां तक की कई बार कॉलोनी वासियों ने विधायक व जेडीए अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा था, उसके बाद भी उसे विकसित नहीं किया गया। अब मकान निर्माण के लिए अचानक उसी भूमि की एनओसी दे दी। बताया जाता है कि 30 अक्टूबर 2023 को एनओसी जारी की गई है। जबकि उक्त भूमि का अधिगृहण नगर सुधार न्यास द्वारा किया गया था। उक्त खसरों की भूमि तीन भाईयों के नाम पर थी जिनके नाम की प्रमोद शुक्ला, अजय शुक्ला, के और सुरेश शुक्ला है, निवासी लाल हवेली रानीदुर्गावती वार्ड गढ़ा है। सूत्रों के मुताबिक इनमें भूमिस्वामी प्रमोद शुक्ला को पहले बिना राशि जमा कराए एनओसी जारी कर दी गई थी। लेकिन बाद में फंसने डर से अचानक पैसा जमा कराकर जेडीए अधिकारियों ने विधिवत एनओसी जारी करने का दावा किया। हालांकि जानकार कहते हैं कि प्रमोद शुक्ला की एनओसी भी अवैध है। क्योंकि इसके लिए मध्यप्रदेश शासन और जेडीए बोर्ड से अनुमोदन या परमीशन नहीं ली गई।


न्यूज टैप के सवालों में घिर गए सीईओ और अमित धुर्वे 

  • सीईओ दीपक वैद्य और अमित धुर्वे की जोड़ी पूरे जेडीए पर भारी
  • अपर कलेक्टर मीशा सिंह ने तत्काल बुलाई मूल फाइल
  • दफ्तर बंद होने के बाद रात में क्या करते रहे सीईओ दीपक वैद्य और अमित धुर्वे
  • जेडीए कर्मचारी के बयान वाली नोट शीट किसने फाड़ी
  • एसडीएम कोर्ट में केस चल रहा और जेडीए ने दे दी फर्जी एनओसी
  • लोकायुक्त – ईओडब्ल्यू में शिकायत

 

इनके नाम की एनओसी


जानकारी मिली है कि नगर सुधार न्यास के द्वारा खसरा नंबर 5/2/4, 8/2/7 का रकवा 7534.7, 7534.7,15069 वर्गफुट भूमि का मुआवजा देने के बाद भूमि अपने पास ले ली थी। इसी भूमि की एनओसी जेडीए के सहायक भू अर्जन अधिकारी के द्वारा लाल हवेली गढ़ा इंदिरा गांधी वार्ड निवासी अजय शुक्ला को दे दी गई। जानकारी के मुताबिक एनओसी भी बिना राशि जमा कराए दी गई जो पूर्णतया अवैध कृत्य हैं। वेसे भी नियम यह कहता है कि एक बार राजपत्र में प्रकाशन हो जाने के बाद उस भूमि पर जेडीए एनओसी जारी नहीं कर सकता है। खास बात यह है कि जेडीए की योजना क्रमांक 11 शत प्रतिशत विकसित योजना है। ऐसे में नियम ये भी कहता है कि डेवलप्ड स्कीम में जेडीए, योजना की भूमि को मुक्त नहीं कर सकता। जाहिर है इन नियमों को देखते हुए उक्त भूमि की एनओसी जारी करना पूर्णतः अवैधानिक है।

ना शासन से परमिशन ली ना जेडीए बोर्ड और चेयरमैन से

इस एनओसी के लिए जेडीए ने शासन और जेडीए बोर्ड की आंखों में धूल झोंकी। मध्यप्रदेश शासन से विधिवत अनुमति लेने का प्रावधान है जिसका जेडीए अधिकारियों ने खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया। टीआईटी एक्ट की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं। इतना ही नहीं जेडीए बोर्ड और अध्यक्ष से भी अनुमोदन नहीं कराया गया। उस वक्त जेडीए की कमान चेयरमैन के रूप में डिवीजनल कमिश्नर के हाथ में थी। यानि संभागीय आयुक्त तक से अनुमोदन नहीं कराया गया और चुपके से एनओसी दे दी गई।

डिवीजनल कमिश्नर ने बैठाई जांच।

मामला उजागर होते ही डिवीजनल कमिश्नर अभय वर्मा ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए। फरवरी 2024 में जांच का जिम्मा कलेक्टर जबलपुर दीपक सक्सेना को सौंपा गया।

अपर कलेक्टर मीशा सिंह कर रहीं जांच।

कलेक्टर के आदेश पर अपर कलेक्टर मीशा सिंह इस पूरे मामले की जांच कर रही हैं। न्यूज़ ट्रैप ने इस बारे में उनसे चर्चा की, तो उन्होंने कहा कि जल्द ही जांच पूरी कर अग्रिम कार्यवाही की जाएगी। जाँच के बिन्दू तय कर लिए गए हैं।

रात में क्यों खुला जेडीए दफ्तर.. मीशा सिंह ने फौरन बुलाई मूल फाइल …

4 जून मतगणना वाले दिन से पहले जेडीए कां दफ्तर अचानक रात 8 से 10 बजे के बीच खुला रहा। सूत्रों के मुताबिक दफ्तर में दो लोग ही मौजूद बताए जाते हैं, जिसमें सीईओ दीपक वैद्य और अमित धुर्वे शामिल हैं। न्यूज़ ट्रैप को भी रात में जेडीए कार्यालय खुले रहने और कुछ महत्वपूर्ण फाइलों के टेबल पर दौड़ने की खबर लगी। यह बात जैसे ही सरकारी गलियारों में फैली अपर कलेक्टर मीशा सिंह ने आनन-फानन में विवादित एनओसी वाली मूल फाइल अपने पास बुला ली। जानकारी मिली है कि छुट्टी के दिन भी रात में दफ्तर खोला जा रहा है।

अमित धुर्वे कहने लगे अरे.. वह ह तो फर्जी एनओसी है कुछ नहीं होगा मेरा..

जिस फर्जी एनओसी से सीईओ और अमित धुर्वे के पैरों तले जमीन खिसक गई, अब उसी एनओसी के बारे में अमित धुर्वे कह रहे हैं अरे.. वह तो फजी एनओसी है.. उससे मेरा कुछ नहीं होने वाला

धुर्वे जी यदि एनओसी फर्जी है, तो पुलिस में एफआईआर क्यों नहीं कराई

यदि अमित धुर्वे की बात कुछ देर के लिए सही भी मान ली जाए बते कि एनओसी फर्जी है, तो बड़ा सवाल यह है कि फिर अमित धुर्वे ने अपने दस्तखत वाली एनओसी के विरुद्ध पुलिस में एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई। उन्हें किसने रोका है… उन्हें किस बात का डर है… एनओसी बने 8 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है, अमित धुर्वे या फिर जेडीए के सीईओ ने एफआईआर क्यों नहीं कराई..?

जेडीए कर्मचारी के बयान वाली नोटशीट फाड़ी

न्यूज ट्रैप को अपने सूत्रों से जानकारी लगी है कि इस एनओसी को लेकर एक जेडीए कर्मी बेहद मुखर था और कहे अवैध फर्जी काम करने के पक्ष में नहीं था। उसने नोट शीट में भी टिप्पणी की थी। जिसके तहत वह इस पूरे कजर्जीवाड़े के खिलाफ था। मगर पता चला है कि उक्त कर्मी की नोटशीट में दर्ज टिप्पणी हटाने के लिए नोटशीट फाड़कर फाइल से अलग कर दी गई।

टीएनसीपी के लेआउट में आज भी कटे है जेडीए के प्लॉट

वादित खसरे और एनओसी वाली जमीन में आज भी टीएनसीपी के लेआउट में जेडीए के प्लॉट कटे हैं। इस – पर यदि जेडीए टेंडर निकाले, ऑफर निकाले तो जेडीए को 15000 रुपए वर्गफुट का रेट आसानी से मिल ता है। करोड़ों की राशि शासन के खजाने में आ सकती है।

हड़बड़ी में राशि जमा करने पत्र जारी किया

विश्वास सूत्रों से जानकारी मिली है कि दिनांक 30.05.2024 को जेडीए ने फर्जी एनओसी के मामले में एक पत्र जारी किया, जिसमें भूमि स्वामी से एनओसी के लिए राशि जमा करने का जिक्र किया गया। मजेदार बात यह है कि इस पत्र का उल्लेख मूल फाइल में भी है। इसके बाद भी बिना पैसा जमा कराए एनओसी दे दी गई। सूत्रों का कहना है कि बिलकुल इसी तरह का खेल प्रमोद शुक्ला बाली जमीन के मामले में भी हुआ था जिसमें पहले बिना राशि जमा कराए एनओसी जारी कर दी गई। और फिर बाद में फंसने के डर से रातो-रात ट्रांजेक्शन कर पैसा जमा कराते हुए एनओसी जारी की गई।

जेडीए सीईओ दीपक वैद्य से सीधी बात

सवाल– क्या ये बात सही है कि ख.नं. 5/2/4, 8/2/7 में फर्जी एनओसी दी गई है?

जवाब– चैक करना पड़ेगा, एनओसी प्रक्रिया में थी, जिस एनओसी की आप बात कर रहे हैं वह जारी नहीं की गई।

सवाल -तो फर्जी एनओसी कैसे बन गई और बाजार में घूमने लगी?

जवाब– नहीं पता

सवाल– उस एनओसी में अमित धुर्वे के साइन हैं। जेडीए के पत्रक पर जो लिखापढ़ी है उसके फाउन्ट भी जेडीए के कम्प्यूटर के ही हैं?

जवाब- मैंने नहीं देखी वो एनओसी

सवाल– एनओसी फर्जी थी, तो एफआईआर क्यों नहीं कराई गई?

जवाब– चूप रहे गए।

सवाल– राजपत्र में प्रकाशन के बाद और विकसित योजना की जमीन कैसे जेडीए मुक्त या वापस कर सकता है?

जवाब– देखिए… मैं क्या बोल रहा हूं, जिस जमीन का मुआवजा दिया गया है उसे हम नहीं छोड़ सकते। जिसका कम्पनसेशन नहीं दिया उस पर एनओसी दे सकते हैं।

सवाल– एनओसी वाली जमीन टीएनसीपी के लेआउट में जेडीए के प्लॉट कटे हैं। कैसे एनओसी दे दी?

जवाब – आप मुझे उसका खसरा नंबर दीजिए। वो कोई इश्यू नहीं है।

सवाल– बाजार में जो एनओसी घूम रही है उसे देखा है आपने

जवाब– नहीं देखा। आप मुझे जरूर दीजिए, बताईए… यदि ऐसा है तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि ऐसी कोई एनओसी कैसे जारी हुई।

सवाल– एनओसी देने के लिए आपने शासन, जेडीए बोर्ड, चेयरमेन तक से परमीशन नहीं ली?

जवाब– जिस खसरे की आप बात कर रहे हैं, उसकी एनओसी नहीं दी। जिस खसरे की एनओसी दी, उसे देखना पड़ेगा कौन सा खसरा है।

सवाल– वैसे सीईओ साब… हम आपको बता दें कि जिस खसरे की एनओसी देने की आप बात कर रहे हैं, उसकी एनओसी भी नियम विरूद्ध और अवैध है। क्योंकि उस भूमि का भी राजपत्र में प्रकाशन हो चुका था। और जेडीए की विकसित योजना की भूमि है।

जवाब – कुछ नहीं बोले।

अमित धुर्वे से सीधी बात

सवाल– हल्ला होने के पहले वही एनओसी सही थी बाद में फर्जी कैसे हो गई?

जवाब– मुस्कुराते हुए… कोई एनओसी जारी नहीं की।

सवाल– जारी एनओसी दिखाते हुए पूछा गया कि ये एनओसी किसने जारी की?

जवाब– हंसते हुए… अरे… सब नकली है, फर्जी है…

सवाल– आपने बिना पैसे जमा कराए कैसे एनओसी दे दी?

जवाब– कोई एनओसी नहीं दी, जिसकी बात आप कर रहे हैं या जो एनओसी आप दिखा रहे हैं वो सब फर्जी हैं।

सवाल– यदि एनओसी फर्जी है तो आपने पुलिस में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की?

जवाब– चेहरा लटकाया… चुप रह गए।

सवाल- आप कह रहे हैं उस एनओसी में मेरे फर्जी साइन हैं, तब भी 8 माह हो गए आपने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई?

जवाब– चुप्पी साध ली।

सवाल– ये तो बहुत बड़ी धांधली है, शासन, जेडीए बोर्ड, चेयरमेन से कोई परमीशन, कोई अनुमोदन नहीं लिया?

जवाब– अरे छोड़ो… कुछ नहीं होने वाला… परमीशन लेने की जेडीए को बाध्यता नहीं है।

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